पर्यूषण पर्व: आत्म-शुद्धि का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय संगम
विजेंद्र नानावटी
एस्ट्रोलॉजर, गाइड एवम मोटीवेटर
पर्यूषण पर्व जैन धर्म का एक प्रमुख महापर्व है, जो भाद्रपद मास में मनाया जाता है। श्वेतांबर सम्प्रदाय में यह 8 दिनों (20 - 27 अगस्त) का और दिगंबर सम्प्रदाय में 10 दिनों का होता है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य आत्म-शुद्धि, संयम, उपवास, ध्यान और क्षमा याचना के माध्यम से आत्मा को कर्मों से मुक्त करना है। धार्मिक दृष्टि से यह आत्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पर्व के रीति-रिवाजों में गहरा वैज्ञानिक और ज्योतिषीय आधार भी छिपा है?
पर्यूषण पर्व का वैज्ञानिक औचित्य
१. उपवास के स्वास्थ्य लाभ
पर्यूषण पर्व में जैन अनुयायी एकाशन, बियासन या पूर्ण उपवास करते हैं, जो इंटरमिटेंट फास्टिंग का रूप है। यह वजन नियंत्रण, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल में सुधार करता है, साथ ही ऑटोफैजी के माध्यम से कोशिकीय सफाई और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। भाद्रपद मास में उपवास पाचन तंत्र को आराम देता है, जो मानसून में बैक्टीरिया से प्रभावित भोजन के कारण होने वाले रोगों से बचाता है। रात्री भोजन का निषेध सर्कैडियन रिदम को संतुलित कर नींद और ऊर्जा स्तर को बेहतर करता है।
ध्यान और मंत्र जाप के मानसिक लाभ
ध्यान और मंत्र जाप तनाव, चिंता और अवसाद को कम करते हैं, मस्तिष्क के रसायनों को संतुलित करते हैं, और ग्रे मैटर को बढ़ाकर स्मृति व भावनात्मक नियंत्रण में सुधार करते हैं। क्षमा याचना (मिच्छामी दुक्कड़म) सामाजिक सद्भाव और मानसिक शांति को बढ़ावा देती है।
आहार प्रतिबंध और पर्यावरणीय औचित्य
जड़ वाली सब्जियों का त्याग मानसून में बैक्टीरिया से बचाव करता है। आयंबिल उपवास डेयरी उपयोग कम कर कार्बन फुटप्रिंट घटाता है। अहिंसा का सिद्धांत जैव विविधता संरक्षण और सस्टेनेबल जीवनशैली को बढ़ावा देता है, जो हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर से बचाव के लिए वैज्ञानिक रूप से लाभकारी है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से पर्यूषण पर्व का महत्व
1. भाद्रपद मास और ग्रहों का प्रभाव
भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर) ज्योतिषीय रूप से कन्या राशि (Virgo) के सूर्य के प्रभाव में आता है, क्योंकि सूर्य इस समय कन्या राशि में प्रवेश करता है। कन्या राशि का स्वामी बुध (Mercury) है, जो बुद्धि, विश्लेषण और आत्म-चिंतन का प्रतीक है। पर्यूषण पर्व में आत्म-शुद्धि, ध्यान और आत्म-निरीक्षण पर जोर देना इस ज्योतिषीय प्रभाव से मेल खाता है। बुध का प्रभाव मन को शांत करने, तार्किक चिंतन और नैतिकता को बढ़ावा देता है, जो पर्यूषण के दौरान धार्मिक ग्रंथों के श्रवण और मंत्र जाप से संरेखित होता है। मंत्र जाप से मस्तिष्क के रसायन संतुलित होते हैं, जो ज्योतिषीय दृष्टि से बुध के सकारात्मक प्रभाव को और मजबूत करता है।
इसके अलावा, भाद्रपद मास में चंद्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण होती है। चंद्रमा, जो मन और भावनाओं का कारक है, इस समय विभिन्न नक्षत्रों से गुजरता है। पर्यूषण के दौरान क्षमा याचना (*मिच्छामी दुक्कड़म*) और भावनात्मक शुद्धि का अभ्यास चंद्रमा के प्रभाव को संतुलित करने में मदद करता है, जिससे मानसिक शांति मिलती है। यह वैज्ञानिक दृष्टि से तनाव कम करने और न्यूरोकेमिकल संतुलन से भी जुड़ा है,
2. उपवास और ग्रहों का स्वास्थ्य पर प्रभाव
ज्योतिष में उपवास को ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने का साधन माना जाता है। पर्यूषण के उपवास, जैसे एकाशन, बियासन या पूर्ण उपवास, शारीरिक और मानसिक शुद्धि का कार्य करते हैं। ज्योतिषीय रूप से, सूर्य (पाचन शक्ति और आत्मबल का कारक) और शनि (संयम और अनुशासन का कारक) के प्रभाव को संतुलित करने में उपवास सहायक होते हैं। सूर्य की ऊर्जा पाचन तंत्र को मजबूत करती है, और उपवास से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है, वैज्ञानिक रूप से उपवास से एंथ्रोपोमेट्रिक और बायोकेमिकल पैरामीटर्स में सुधार होता है । शनि का प्रभाव अनुशासन और तप को प्रोत्साहित करता है, जो पर्यूषण के तप और संयम के अभ्यास में स्पष्ट दिखता है।
3. मानसून और ज्योतिषीय मौसमी प्रभाव
भाद्रपद मास मानसून के अंत में आता है, जब जल तत्व (ज्योतिष में चंद्रमा और शुक्र से संबंधित) का प्रभाव बढ़ता है। इस समय जलजनित रोगों का खतरा रहता है, फल-सब्जियां कीड़ों और बैक्टीरिया से प्रभावित हो सकती हैं। ज्योतिष में जल तत्व के अतिरिक्त प्रभाव को संतुलित करने के लिए आहार प्रतिबंध और उपवास की सलाह दी जाती है। पर्यूषण में जड़ वाली सब्जियों और कुछ फलों के त्याग का नियम इस ज्योतिषीय सिद्धांत से मेल खाता है। यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी तर्कसंगत है, क्योंकि मानसून में इन खाद्य पदार्थों से रोगों का खतरा बढ़ता है।
4. अहिंसा और पर्यावरण: ज्योतिषीय सामंजस्य
ज्योतिष में पृथ्वी और पर्यावरण का संरक्षण गुरु (Jupiter) और शुक्र (Venus) के सकारात्मक प्रभाव से जुड़ा है, जो प्राकृतिक संतुलन और समृद्धि के प्रतीक हैं। पर्यूषण में अहिंसा का सिद्धांत और आयंबिल जैसे उपवास, जो डेयरी और अन्य उत्पादों के उपयोग को कम करते हैं, पर्यावरणीय कार्बन फुटप्रिंट को घटाते हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से, यह गुरु के प्रभाव को मजबूत करता है, जो नैतिकता, धर्म और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा है। इस प्रकार, पर्यूषण का पर्यावरणीय लाभ ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है।
5. ध्यान और ग्रहों की ऊर्जा
पर्यूषण में ध्यान और मंत्र जाप का अभ्यास ज्योतिषीय रूप से राहु और केतु जैसे छाया ग्रहों के प्रभाव को संतुलित करने में सहायक माना जाता है। ये ग्रह मानसिक अशांति और भ्रम से जुड़े हैं। ध्यान और प्रार्थना से मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो वैज्ञानिक रूप से न्यूरोकेमिकल संतुलन (जैसे सेरोटोनिन और डोपामाइन) को बढ़ावा देता है। ज्योतिषीय दृष्टि से, यह राहु-केतु के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है और बृहस्पति की सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है।
अंत में समस्त जैन संप्रदाय की ओर से पर्यूषण के इस पावन पर्व पर सभी से मिच्छामी दुक्कड़म ।
विजेंद्र नानावटी
पूर्व प्रबंध निदेशक,
मध्य प्रदेश पॉवर जनरेटिंग कंपनी,
पूर्व डायरेक्टर - नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार,
पूर्व सलाहकार - मध्यप्रदेश मेट्रो रेल , मध्य प्रदेश शासन,